जलते ख्वाबों को लिए खुश्क पलकों के तले
जलते ख्वाबों को लिए खुश्क पलकों के तले
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जलते ख़्वाबों को लिऐ ख़ुश्क पलकों के तले
फूँक के दर्द को हम सुलगे दीपक बन गये
दिल की सुनी गलियों से आवाज़ें हैं आई
कोहरे के धुँऐ में लिपटी आरज़ू चली आई
हसरतों की गर्मी से हम तप के फिर सुलगने लगे
साँसे फिर तेज़ चली यादों में उलझने लगी
नब्ज़ थमने लगी तकलीफें ख़र्च होने लगी
रस्मों की तपिश में हम आग बन दहकने लगे
