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जब ओस की नरमी लिए सूरज का नूर घर आया ....

जब ओस की नरमी लिए सूरज का नूर घर आया ....

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दरवाज़े के पीछे छुपा,

डराने के लिए है खड़ा
आने लगी शरारत, 

आँखों से चेहरे पे
नटखट चतुर है बड़ा
मासूम लाड़ला मेरा, 

कितना हो गया है बड़ा

बिन बोले बातें करना, इशारों को भी समझना, तुझसे ही सीखा है मैने
अपनों पे भरोसा करना, गिरने से भी ना डरना, तुझसे ही सीखा है मैने
शामिल तू ज़िंदगी मे, ऐसे हुआ है, जैसे कोई मशवरा

 रुनझुन सी धुन बजे है, किल्कारियों मे तेरी,सुनना मे चाहूँ बार बार
मिस्री से मीठे,लगते हैं बोल तेरे,तुतलाके पुकारे जब मुझे
मुस्कुराकर फिर तू, क्यूँ रिझा रहा है, लग जा गले कोहिनूर

 


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