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Krishna Khatri

Others

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Krishna Khatri

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जलन

जलन

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चूल्हा भी जलता है 

चिता भी जलती है 

दिल भी जलता है 

शमा भी जलती है 

मगर ,,,,,,,

कितना फर्क है -

इन सबके जलने में !

चूल्हा जलकर रोटी देता है

चिता जलाकर ,,,,,

अस्तित्व विहीन कर देती है 

दिल जलते-जलते 

चिता के रास्ते ले जाता है 

और शमा ,

वो भी तो कम नहीं 

मिटा देती है

परवानों का नामोनिशां

फिर भी,,,,,,,,,,,

रोशन करती है सारा जहां 

इस तरह ,,,,

हर जलना ,,,,,,, 

एक अलग अहसास कराता है -

कभी खुशी की लपट

कभी दर्द की टीस

कभी अनुभूतियों का उजाला 

चूल्हा चिता दिल शमा

जीवन के शास्वत सत्य है

जो सिलसिलेवार जलकर

अपनी-अपनी पारी खेलते हैं 

जाने-अनजाने देते हैं जलन !

          




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