जलन
जलन
चूल्हा भी जलता है
चिता भी जलती है
दिल भी जलता है
शमा भी जलती है
मगर ,,,,,,,
कितना फर्क है -
इन सबके जलने में !
चूल्हा जलकर रोटी देता है
चिता जलाकर ,,,,,
अस्तित्व विहीन कर देती है
दिल जलते-जलते
चिता के रास्ते ले जाता है
और शमा ,
वो भी तो कम नहीं
मिटा देती है
परवानों का नामोनिशां
फिर भी,,,,,,,,,,,
रोशन करती है सारा जहां
इस तरह ,,,,
हर जलना ,,,,,,,
एक अलग अहसास कराता है -
कभी खुशी की लपट
कभी दर्द की टीस
कभी अनुभूतियों का उजाला
चूल्हा चिता दिल शमा
जीवन के शास्वत सत्य है
जो सिलसिलेवार जलकर
अपनी-अपनी पारी खेलते हैं
जाने-अनजाने देते हैं जलन !
