ज़िंदा हूं
ज़िंदा हूं
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जीने को और क्या चाहिए
सर पे छत है थाली में रोटी है
जेब में पैसे हैं कपड़े हैं लत्ते हैं
ठीक ही तो है! ज़िंदा हूं।
दिनभर मेमे देख कर हंस लेता हूं
कमरे की दीवारें निहार लेता हूं
कोई पूछ ले हाल कैसा है
तो कह देता हूं ज़िंदा हूं।
पंखे की आवाज़ है टीवी का शोर है
गाड़ियों की चें पें है कभी ट्रेन की पोंपों है
एक बिस्तर है, उतना नरम नहीं है
पर लेटकर ये आवाज़ें सुनकर लगता है
हां, ज़िंदा ही हूं।