STORYMIRROR

Prakash Yadav

Others

4  

Prakash Yadav

Others

-:जीने का सहारा:-

-:जीने का सहारा:-

1 min
27.6K


हर बार की तर

नहीं थे बाबूजी  

इस बार

बैठे दरवाजे में

इंतेज़ार में मेरे  

जिसका मुझे भी

बेसब्री से होता था

इंतेज़ार

जिनसे मिलने को

मन आतुर रहता था

रास्ते भर

घर जाते समय

कि कब जी भर

देख लूँ एक नज़र

पढ़ लूँ उनकी आँखों में

वो उमड़ता स्नेह

जिसे पाने को

मन बेचैन रहता था

बगल में बैठते ही

भूल जाता था

दुनिया की सारी बातें

बस जी करता

जी भर बातें करूँ

दुनिया जहाँ की

जो बंद है महीनों से

मन के भीतर

बैठ उसी जगह

पहले की तरह

खोजने लगी सूनी आँखें

उनकी उपस्थिति को

जिसे न पाकर

निकल पड़े आँसू

अनायास आँखों से

याद कर उन एहसासों को

जिसे दे गऐ निःस्वार्थ

मेरे जीवन को

जीते जी जो

जीने का सहारा है

              प्रकाश यादव निर्भीक

              बड़ौदा – 09-09-2015

 


Rate this content
Log in