-:गुमनाम:-
-:गुमनाम:-
कहाँ गुमनाम
हो गई अचानक
मेरी दुनिया से
कहा करती थी
ताउम्र निभाऊँगी
रिश्ता तुम्हारे साथ
चाहे तुम जहाँ जाओ
कुछ माँगा भी तो नहीं
न मैंने तुमसे
न तुमने मुझसे
बस छोड़ दिया
एक दूसरे पर
देने को सबकुछ
बहुत पीड़ा हुई थी
उस वक़्त छोड़ते हुऐ
तुमको और तुम्हारे शहर को
कुछ दिनों तक ही तो
चला सिलसिला गुफ़्तगू का
दरमियान हमारे
उस दिन के बाद
और फिर आज तक
न तुम्हारा फोन
न कोई संदेश
न तुम्हारी उपस्थिति
फ़ेसबुक अथवा
किसी अन्य माध्यम से
न तुमने कोई पता दिया
जिस पर लिख सकूँ
मन की बात को
कह दूँ तुमसे
तुम्हारा कहा हुआ
वो हर एक लफ़्ज़
जिस पर यक़ीन
मुझे ही नहीं तुम्हें भी था
गुज़ारे हुऐ उस
यादगार वक़्त के साथ ...........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 16-09-2015