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Archana Verma

Others

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Archana Verma

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इस बार

इस बार

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सोचती हूँ,

क्या इस बार तुम्हारे आने पर

पहले सा आलिंगन कर पाऊँगी

या तुम्हें इतने दिनों बाद देख

ख़ुशी से झूम जाऊंगी

चेहरे पे मुस्कान तो होगी

पर क्या वो सामान्य होगी

तुम्हें चाय का प्याला दे

क्या एक मेज़बान की तरह

मिल पाऊँगी

 

तुम सोफे पर बैठे

शायद घर की तारीफ करोगे

माहौल को हल्का करने

ज़िक्र बाहरी नजारों का करोगे

तुम्हारी इधर उधर की बातों से

क्या मैं खुद को सहज कर पाऊँगी

 

मेरी ख़ामोशी पढ़ तुम सोचोगे

जैसा छोड़ा था सब कुछ वैसा ही है

मैं भी उसे भांप कर कहूँगी

हाँ, जो तोड़ा था तुमने वो

बिखरा हुआ ही है

क्या मैं अपनी चुप से

वो चुभन छुपा पाऊँगी

 

बहुत कोशिशें कर भी,

जब मैं खुद को न रोक पाऊँगी

पूछूंगी वही बात फिर से ,

न चाहते हुए भी दोहराऊंगी

ज़ुबानी ही सही क्या

पल भर के लिए भी वो लम्हा

मैं दोबारा जी पाऊँगी

 

मेरी ये बात सुन तुम मुझ पर

खिझोगे चिल्लाओगे

अपने को सही साबित करने

तर्क वितर्क तैयार कर आओगे

मैं सिर्फ एक सवाल पूछूंगी तुमसे

तुम मेरी जगह होते तो क्या करते

तुमने जो अपने मन की कही,

तो ठहर जाऊँ शायद

वरना तुम्हें माफ़ कर आगे बढ़ जाऊंगी

 

तुम्हारा जवाब मुझे मालूम है कब से

तुम औरों के दिल की कहा करते हो

सिर्फ अपनी ही सुनते हो

और अपना अहम साथ लिए चलते हो

तुम शायद मुझे मनाओगे, और

फिर मुझे पीछे छोड़, चले जाओगे

तुम्हारे इस रुख से तारुफ्फ़ है मेरा

इसलिए इस बार अपने फैसले पर

नहीं पछताऊँगी

उस पल को एक और सौगात समझ

थोड़ी और पत्थर दिल हो जाऊंगी,

पर इस बार तुम्हारा यकीन न कर पाऊँगी

खुद को फिर से 

बिखरा हुआ न देख पाऊँगी ….

 

 



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