Satish Chandra Pandey
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भोर हो रही है
धीरे-धीरे
सूरज की धमक बढ़ रही है,
थोड़ा किनारे हो जा
आज तो कुहरा
आज पूरी तरह चमकने दे उसे,
इन लम्हों को
जी लेने दे।
तू इकट्ठा कर आज
अपने सारे अंश कुहरे
कल घेर लेना पूरी शिद्दत से,
लेकिन आज उजाला होने दे।
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