इक बार फिर..!!!
इक बार फिर..!!!
आज फिर इक बार कुछ लिखना चाहती हूं,
आज फिर इक बार कुछ सुनाना चाहती हूं,
इस साजिश भरी दुनिया में सब खोए बैठे है,
हज़ारों खुशियां हैं, सभी की ज़िन्दगी में,
फिर भी एक ग़म को रोए बैठे हैं....!!!
कौन अपना है, कौन पराया, ये सब खाली शब्द तय कर देते हैं,
कौन अपना, कौन पराया, इस चक्कर में अपनी सारी ज़िन्दगी व्यय कर देते हैं...!!!!
इंसानियत की करामत का अंदाज़ा हम कुछ इस कदर लगा बैठे हैं,
खुद को इंसान और गैरों को हैवान समझ बैठे हैं...!!!
ख़ामोश रहकर रिश्तों को तोड दिया जाता है,
फितरत देखो आज की,
कुछ न कहकर भी ज़िन्दगी को नया मोड़ दिया जाता है...!!!
नसीहत देती हूं, दिल से अमीरी रखो,
कपड़ों की गरीबी कोई नहीं देखेगा,
खुद्दारी में गरीबी रखो,
हर कोई गरीब बनना चाहेगा...!!!
शानो-शौकत आज है कल ना हो,
ऐसी गरीबी रखो, तुम्हारे अपने तुम्हे अमीर बना देंगे...!!!
सरहदों के अलावा भी कुछ होता है,
ज़ोर-ज़ोर से कहने वाला ही सरहदों के बीज बोता है...!!!!