हथेलियों का कर्ज़
हथेलियों का कर्ज़
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जिस दिन मेहँदी लगी
एक एक रंग चढ़ता गया
मन के कुँवारे
कैनवास पर
चित्रित हुईंं वे सारी
ठोस परतेंं
समय जिन्हें
आश्वस्त करता रहा
कुछ देखे अनदेखे
ख़्वाबों से
वज़ूद मेरा
सिमटने लगा
हथेली पर सजे
मेहँदी के बूटे में
मैंं मैंं न रही
मेहँदी ने कर दिया
ख़ुद से पराया
मिटाकर मुझे
सारी उम्र भ्रम में रही
निज को सौंपकर
मेहँदी के नाम
आज आईने में
ख़ुद को देख चौंक पड़ी
मेहँदी सर चढ़कर
हथेलियों का कर्ज़
वसूल रही थी
और मेरा मधुमास
विदा ले रहा था
आहिस्ता आहिस्ता
मेरी धड़कनों की