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हाल पूछा है तभी

हाल पूछा है तभी

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मै मोहब्बत के सफ़े पर

इक तारीख़ सी सजी हूँ और तू मेरे दिल के गोशे में हिना बन के रचा है

जब भी किसी का होकर

ये दिल धड़कता है दर्द कम नहीं

बेहिसाब रहता है इक समँदर सा

नज़दीक ही उमड़ता है

हर लहर का हिसाब रखता है मौजें दिल के क़रीब आती हैं लफ्ज़ कश्ती से थरथराते  हैं कई पाज़ेब की

तरन्नुम बन

चलती पतवार छनछनाती

सुन के वो टूटता,दरकता है मैं घटा बनाया के बरस जाती हूँ मैं अँधेरों की रौशनी उसकी

वो चाँद बन के दरीचों में जगमगाता है वो इधर से ज़रा सा क्या गुज़रा मैकदा पास लगा, मैकशी का आलम

भी

बहके बहके से लगे

सारे नज़ारे तौबा जब लगा यूँ कि बहक जाऊँगी मर जाऊँगी

इश्क़ हीरा है, ज़हराब है

मिट जाऊँगी हाल पूछा है तभी मेरे गमगुसारों ने


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