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गौतम से राम तक

गौतम से राम तक

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गौतम ने तुम्हेंं पुत्रीवत पाल पोसकर बड़ा किया और अपनी अंकशायिनी बनाया तुम चुप रहीं मन

ही मन जिसे(इन्द्र) प्रेम करती थीं उसे पाने की लालसा के बावजूद विरोध न कर सकीं चुप रहीं उस दिन इन्द्र को सामने

पा रुक नहीं पाई तुम ख़ुद को ढह जाने दिया उसकी बाहों में यह तुम्हारा अधिकार भी तो था प्यार करने का अधिकार पर इसके एवज गौतम के आरोप,प्रत्यारोप तिरस्कार,शाप?

गौतम का तुम पर एकाधिकार की समाप्ति का घायल अहंकार,कायरता और दुर्बलता थी?

तुम चुप रहीं मूक पत्थर हो

गईं पत्थर बन तुम सहती रहीं लाचारी,बेबसी,घुटनबदन को गीली लकड़ी सा सुलगाती

अपमान की ज्वाला तुम्हारे पाषाण वास में तुम्हारी पीड़ा के हितन गौतम आये न इन्द्रराम ने तुम्हेंं पैरों से छुआ तुम

पिघल गईं ख़ामोशी से पदाघात सह गईं सोचो अहिल्या गौतम से राम तक की तुम्हारी यात्रा पुरुष सत्ता की बिसात

पर औरत को मोहरा नहीं बनाती?


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