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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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होली में

होली में

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छिड़ गई तान नई 

कली खिलके फूल हुई 


गाओ-गाओ मंगल गान 

गुलाब वाटिका की शान 


आ गया फाग नया 

उर में जागा भाव नया 


गौरी के होंठ सुर्ख लाल 

रसिया को देख बदली चाल 


मटक-मटक, चटक-चटक 

मन जाये चहक - चहक 


आँखों में भांग का डोरा 

बूढ़ा घूमें बनकर छोरा 


तितलियों की देख उड़ान 

आशिकों की निकली जान 


गौरे गाल रंगे गुलाल 

मर्यदा हुई बेहाल 


साथी इस होली में 

नजर न गढ़ाना चोली में 


संस्कारी बनकर रहना 

‘कुमार’ का है सबसे कहना 




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