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हिन्दी कविता- काश्मीर कलंक कड़ी

हिन्दी कविता- काश्मीर कलंक कड़ी

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कट गई कलंक कड़ी तीन सत्तर,

कश्मीर अब आजाद हुआ।

रोये छाती पीट बाल नोच,

आतंकी धंधा बर्बाद हुआ।

बहत्तर सालो गुलामी कश्मीर,

खुशियो का अभिसाप बना।

अलगाववाद आतंकवाद हुआ अंत।

सविन्धान अब आबाद हुआ।

थमा पत्थर नौजवानो फेंकवा,

हिन्द की सेना, अपनों से दूर किया।

भेजे अपने बेटे विदेश।

धन वतन लूट पाट छलकपट,

स्विस बैंक अब खाक हुआ।

राज्य और लोकसभा मचाते हल्ला,

हालत बिगड़नेवाली है।

ऊपर उठ राजनीति राष्ट्र हित बात नहीं।

बिछा जो कांटा कश्मीर,

सारा खिल अब गुलाब हुआ।

रुकी जो यात्रा बाबा अमरनाथ,

फिर शुरू हो सकती है।

दिन सोमवार माह सावन वर्ष उन्नीस,

हुई यात्रा पूरी अमरनाथ आशीर्वाद मिला।

लेना फैसले बड़े हँसी खेल की बात नही।छाती चौड़ी शेरे जिगर मोदी फिगर चाहिए।

वर्षो था जो मर्ज पुराना।

मोदी शाह ने पूरा साफ किया।

मचा हड़कंप पाक नापाक,

थर थर डर भारत काँप रहा।

क्यो हुआ कैसे हुआ सोचा न था।

अब तक न हुआ कैसे वो आज हुआ।

डोभरवाल जोड़ी मोदी शाह, 

सेना हिन्द दुश्मन काल सब कहते है।

मांगे मदद पाक ट्रम्प,

मगर मोदी न उसको भी माफ किया।

बाजे ढ़ोल नगाड़ा फूटे पटाखा

कश्मीर आज जीवन दान मिला।

हर गली हर मोहल्ले भांगड़ा नाच हुआ।

ऊंची सोच पक्का इरादा,

देश कुछ करने का वादा।

भारत की तकदीर बदलेगा।

बना मजबूत सरकार

सविन्धान सरताज हुआ।

बनाया था जहन्नुम जिसे,

जन्नते कश्मीर फिर गुलजार होगा।

दे आसा दिलासा जगा उम्मीदे ज्यादा।

बन मसीहा मोदी भारत की आवाज हुआ।


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