हिंद की राजकुमारी !
हिंद की राजकुमारी !
क्यूँ ख़ाक किया क़ुर्बान,
किया जीवन अपना दान।
बचाया मिट्टी का अभिमान,
जब ना होना था तेरा ही सम्मान।
क्यूँ ख़ुद का दिया बलिदान,
महिला होना था अभिमान।
जब न जन्मा था हैवान,
क्यूँ ख़ाक किया क़ुर्बान।
किया जीवन अपना दान
जब पुरुषों में था न पुरुषार्थ।
बढ़ाया महिलाओं का स्वाभिमान,
दिलाया बराबरी का सम्मान।
उड़ाया गगन में ख़ूब विमान,
फिर क्यों पीड़ित तेरी ही संतान।
जिसका बेटी दिया तूने नाम।
क्यूँ बदलता न इंसान।
क्यूँ समझता न इंसान,
क्यूँ पालता ये हैवान!
अब तो समझो रे इंसान,
अब तो समहलो रे इंसान।
घर में पालो न हैवन,
घर में पालो न शैतान।
बेटियाँ होती हैं धनवान,
बेटियाँ होती हैं सम्मान,
बेटियाँ होती हैं अभिमान।
