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Reenu Bhardwaj

Others

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Reenu Bhardwaj

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हे कुदरत!

हे कुदरत!

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हे कुदरत! तुमसे मिलने को

जी चाहता है

सुबह की मंद मंद ठंडी हवाओं में

और घासों पर लगी ओस की बूंदों में

तेरी एक झलक देखने को 

जी चाहता है

बागों में जाकर, मुसकराते हुए फूलों पर

बैठे भौरों और तितलियों से 

बातें करने को जी चाहता है

हे कुदरत! तुमसे मिलने को 

जी चाहता है

गिरते हुए झरने और बहते हुए

पानी के लहरों के साथ

पर्वतों के नीचे वृक्षों पर

चहचहाते हुए पक्षियों के साथ

खेलने को जी चाहता है

इन सभी दृश्यों को देेखकर

तेरे साथ कुुछ वक्त गुजारने को

जी चाहता है

हे कुदरत! तुमसे मिलने को

जी चाहता है.


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