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Krishna Khatri

Others

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Krishna Khatri

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है ये हम सबका

है ये हम सबका

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ऐ बंदे, ये जग 

ना तेरा ना मेरा 

है ये हम सबका,

सारी दुनिया के बाशिंदे हम 

यहां वहां की कोई बात नहीं ,

बस समझ लीजे इतना,

ये धरती हमारी

वो आसमां भी हमारा 

ये सूरज 

ये चांद-सितारे।


जो यहां भी डालें डेरा 

वहां भी बसाए घर अपना, 

लहराए सागर भी ,

इस पार से उस पार

नदियों की महिमा अपरम्पार।

जो बुझाए है ,

जन-जन की प्यास

तृप्त करे हर प्राणी को 

जब करती नहीं प्रकृति 

भेदभाव कभी

तो फिर भेदभाव कैसा ?

मुझमें-तुझमें या फिर 

हममें-तुममें, 

और इसमें-उसमें 

है ये दुनिया सारी, 

अपना ही परिवार 

यहां रहें चाहे वहां रहें,  

प्रकृति नटी का हर तत्व 

रहता साथ हमारे , 

हम रहते साथ इक-दूजे के,

इसीलिए तो कहते हैं इसको 

वसुधैव कुटुंबकम !

इस पृथ्वी पर 

बसा है विश्व सारा 

एक ही छत्त के नीचे ,

है ये हमारा

बस एक ही परिवार !

         







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