है ये हम सबका
है ये हम सबका
ऐ बंदे, ये जग
ना तेरा ना मेरा
है ये हम सबका,
सारी दुनिया के बाशिंदे हम
यहां वहां की कोई बात नहीं ,
बस समझ लीजे इतना,
ये धरती हमारी
वो आसमां भी हमारा
ये सूरज
ये चांद-सितारे।
जो यहां भी डालें डेरा
वहां भी बसाए घर अपना,
लहराए सागर भी ,
इस पार से उस पार
नदियों की महिमा अपरम्पार।
जो बुझाए है ,
जन-जन की प्यास
तृप्त करे हर प्राणी को
जब करती नहीं प्रकृति
भेदभाव कभी
तो फिर भेदभाव कैसा ?
मुझमें-तुझमें या फिर
हममें-तुममें,
और इसमें-उसमें
है ये दुनिया सारी,
अपना ही परिवार
यहां रहें चाहे वहां रहें,
प्रकृति नटी का हर तत्व
रहता साथ हमारे ,
हम रहते साथ इक-दूजे के,
इसीलिए तो कहते हैं इसको
वसुधैव कुटुंबकम !
इस पृथ्वी पर
बसा है विश्व सारा
एक ही छत्त के नीचे ,
है ये हमारा
बस एक ही परिवार !
