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Srishti Singh

Tragedy

4.5  

Srishti Singh

Tragedy

हादसे

हादसे

1 min
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हादसे अचानक हो जाते हैं 

और बदल देते हैं तस्वीर

रह जाती हैं अविस्मरणीय यादें

और टूटी फूटी सी तक़दीर ,


मन मस्तिष्क कुंद हो जाता है

दिल ज़ार ज़ार हो रोता है

जब चिता से उठती लपटों में

कोई अपना धुआँ धुआँ हो जाता है ,


जब बेबस आँखों के सामने कोई अपना

असहाय सा प्राणों की डोर छोड़ जाता है

नन्हीं हथेलियां जड़वत और जिस्म सुन्न

मानों ज़िन्दगी का दीपक बुझ सा जाता है ,


माँ को तलाशते पिता की सूनी आँखों में से

कमरे में गुमसुम झांकते खिड़की में से

दादा दादी से पूछते माँ कब आएगी

बाज़ार गई है मिठाई और खिलौने लाएगi


माता-पिता ,भाई -बहन,पति-पत्नी और रिश्तेदार

सबका एक दूसरे से बिछड़ने का दर्द

किसी की कलम से बयान नहीं हो सकता

बस महसूस कर सकते हो तिल तिल मरती ज़िन्दगी ,


हादसे वीरान कर देते हैं हँसती खेलती दुनिया

छीन लेते हैं लड़कपन की खुशियां

ओढ़ा देते हैं ग़म के बादलों की स्याह चादर

जिसके नीचे तड़पती है लोरी और नींदिया ,


हादसों में किन्हीं अपनों को खोने का दर्द

बयान करने की इल्तिज़ा रखे रखना


जैसे विरह वेदना में बरसों जलते रहना।


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