गरम हाथ
गरम हाथ
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तुम्हारे गरम हाथ
की गर्मियाश आज भी मौजूद है,
मेरे हाथों की लकीरों में।
जब भी क़लम थामती हूं,
वो गर्मीं मेरे शब्दों की है,
या तुम्हारे हाथों की हरारत की?
उंगलियों में एहसासों की मेंहदी है
या जज़्बातो की स्याही शाही अंदाज़
में बिखेरते मोती मेरी क़लम के जो
मुझे ख़ुद से पहचान करवाती है।
