गज़ल----एक झलक
गज़ल----एक झलक
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कल एक झलक ज़िन्दगी को देखा मैनें
करते हुए बन्दगी ज़िन्दगी को देखा मैंने।
पराए तो गिरा कर माफ़ी मांग लेते हैं
दर्द देते अपने लोगों को देखा मैंने।
लोगों के सपने पल में हकीक़त बन गए
खुद के उजड़ते सपनों को देखा मैंने।
भोला-भाला नहीं हूं चालाक हूं बड़ा
कहते-सुनते लोगों को देखा मैनें।
शायर बहुत हैं मगर जो दर्द बयां कर
सके शायर वो प्रेम को देखा मैनें।