गीत/ फूलों की रौनक
गीत/ फूलों की रौनक
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उपवन में फूलों की रौनक,
मन को बहला देती है।
वासंती-आभा अंतस को,
हरदम सरसा देती है।।
टूट रहे हैं पात पुराने,
और नये कुछ आये हैं।
कैसे सुंदर चित्र धरा पर,
विधि ने आज बनाये हैं।
देख के यह मधुमास मनोरम,
धरती मुसका देती है ।
उपवन में फूलों की रौनक,
मन को बहला देती है।।
देती है संदेश प्रकृति,
मनुज निराश न होना तुम।
जीवन-धरती पर हरदम ही,
स्वप्न नये कुछ बोना तुम।
कहती नहीं धरा हमसे बस
केवल सिखला देती है।
उपवन में फूलों की रौनक
मन को बहला देती है।
तरह-तरह के पुष्प मनोहर ,
हमें सुवासित कर देते ।
बुझे हुए अंतर्मन को ये,
खुशियों से ही भर देते ।
आओ मेरी गोद में खेलो,
धरती महका देती है।।
उपवन में फूलों की रौनक
मन को बहला देती है।
वासंती माहौल हृदय को,
हरदम सरसा देती है।।