ग़ज़ल :-
ग़ज़ल :-
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मौत का ये ढब बदलना चाहिए।
ज़ीस्त की सूरत निकलना चाहिए।
छोड़िये बातें समन्दर की मियाँ।
अब तो क़तरे से संभलना चाहिए।
ज़ीस्त है तो कोई मक़सद भी रहे।
हमको राहे हक़ पे चलना चाहिए।
तेरी हस्ती, जात तेरी है जुदा।
क्यों किसी के ढब में ढलना चाहिए।
कब तलक ढोते रहोगे नफ़रतें।
रन्ज़िशें दिल की पिघलना चाहिए ।
