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Satish Chandra

Others

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Satish Chandra

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गाँव की वो सुबह

गाँव की वो सुबह

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बहुत याद आती है मेरे गाँव की वो सुबह 

जहाँ पशु पक्षियों का कोलाहल,

घर के आंगन में कुचरा का शोर ही अलार्म हुआ करता था 

घर के द्वार पे वो नीम जिसके छांव में सोयी है हमारी कई पीढ़ियां,

जिसका दातुन गांव वालो को दन्तरोग मुक्त रखा ,

शहर वाले जिस हवा को तरस्ते मेरे गाँव के हर पेड़ से आते है वो हवा . .

वो हवा भी ना थी किसी दवा से कम.. 

वो सुबह बकरियो का में- में बछड़ो का मो मो.. .

फिर बाल्टी में दूध गिरने की छन् छनं की आवाज,

चारा मशीन के चर चर की आवाज और फिर

बीच बीच में कुआ से पानी निकलते समय गाडरे की आवाज

मानो प्रकृति अपनी मधुर संगीत बजाने में मगन है

और मैं उसका एक मात्र श्रोता हूँ 

धन्य हो वो गाँव और उस गाँव की वो सुबह..




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