दस ,नौ ,आठ
दस ,नौ ,आठ
एक और रोने की आवाज़ ,
दिल दहलाने लगी थी अब ,
मासूमों के साथ होते गुनाहें,
डराने लगी थी अब।
वो नन्हा सिसक रहा था ,
किसी ने उसकी अस्मत को भी था भेदा ,
क्या फर्क रहा लड़के और लड़की में अब ,
जब दोनो के ही घावों को था ऐसे कुरेदा।
नहीं पता थी उन्हे ये बात ,
कि ऐसी घड़ी में किसका पकड़े वो साथ ,
किससे कहें वो अपने भावों की हलचल ?
कौन बनेगी उनकी अपनी सखी ?
फिर एक दिन एक एन जी ओ ने उन्हे दिया सम्मान ,
और मदद के लिए उन्हे नंबर का दिया ये नाम ,
मुसीबत की घड़ी में मिलाना ये नंबर आसान ,
दस ,नौ ,आठ आता है ज़िसमे श्रीमान।
