दिल या दिमाग
दिल या दिमाग
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कुछ सपने हैं अधूरे जो,
रातों को भी जगाते हैं।
कुछ बातें हैं जो कही नहीं,
कहने में लब घबराते हैं।
डरता हूँ शायद कहने में
कहीं यह पल भी न खो बैठूँ।
कहीं स्वप्न के पूरे होने पर
अपना आपा न खो बैठूँ।
पर मन कचोटता है हरदम
उस बात को जाहिर करने को
करके उस सपने को साकार
अपने को सुरभित करने को।
दिल दिमाग की कशमकश में
कुछ समझ नहीं अब आता है
इन दोनों की तकरार से जन्मा
बवंडर मुझे दहलाता है।
क्या अंत है कोई इस चिंतन का
या यह अनंत की दुविधा है?
कोई जानले मेरे मन की बात
क्या गूगल पर यह सुविधा है?
यदि मिले जवाब मेरे प्रश्नों का
तो मुझे शीघ्र ही बतलाना,
उत्तर देने वाले उस ज्ञानी जन से
मेरी मुलाकात भी करवाना!
