धरती जैसे संत हो गई
धरती जैसे संत हो गई
पीले वसन पहन कर देखो ,
धरती जैसे संत हो गई ।
धरती का आंगन गुलदस्ता,
बनाकर जैसे महक रहा है।
हुआ सुगंधित यह अवनी तल,
चंचल मन सा चहक रहा है।।
जीवन को जीवन देती ये ,
सचमुच हवा महंत हो गई ।
पीले वसंत पहन कर देखो,
धरती जैसे संत हो गई ।।
उद्दंडी बालक सी घूंघट ,
पुरवाई कलियों का खोले।
सोगंधों के कूल तोड़कर,
सदियों के गूंगे लब बोले।।
शकुंतला बन गई बसंती ,
चेतनता दुष्यंत हो गई ।
पीले वसन पहन कर देखो,
धरती जैसे संत हो गई।।
मादक तरुणाई मन हरती ,
तनमन सब न्योछावर करती।
प्रेमाग्नि में दहक रहे मन ,
जलने से कब हिम्मत डरती।।
कल की अल्हड़ अधगगरी भी,
गुणी बड़ी गुणवंत हो गई ।
पीले वसन पहन कर देखो ,
धरती जैसे संत हो गई ।।