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Akhtar Ali Shah

Others

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Akhtar Ali Shah

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धरती जैसे संत हो गई

धरती जैसे संत हो गई

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पीले वसन पहन कर देखो ,

धरती जैसे संत हो गई ।


धरती का आंगन गुलदस्ता,

बनाकर जैसे महक रहा है।

हुआ सुगंधित यह अवनी तल,

चंचल मन सा चहक रहा है।।

जीवन को जीवन देती ये ,

सचमुच हवा महंत हो गई ।

पीले वसंत पहन कर देखो,

धरती जैसे संत हो गई ।।


उद्दंडी बालक सी घूंघट ,

पुरवाई कलियों का खोले।

सोगंधों के कूल तोड़कर,

सदियों के गूंगे लब बोले।।

शकुंतला बन गई बसंती ,

चेतनता दुष्यंत हो गई ।

पीले वसन पहन कर देखो,

धरती जैसे संत हो गई।।


मादक तरुणाई मन हरती ,

तनमन सब न्योछावर करती।

प्रेमाग्नि में दहक रहे मन ,

जलने से कब हिम्मत डरती।।

कल की अल्हड़ अधगगरी भी,

गुणी बड़ी गुणवंत हो गई ।

पीले वसन पहन कर देखो ,

धरती जैसे संत हो गई ।।



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