दहेज का दानव
दहेज का दानव
एक दानव है विकराल ,
समाज को आतंकित करने वाला।
बेटियों को निगलने वाला।।
इस दानव की ज्वाला में,
खाक हो रहे कितने सपने।
दूर हो रहे अपनो से अपने।।
दहेज का दानव, मानव -मन का लोभ रूपी दानव,
कितनी ही बेटियों का शिकार करने वाला।
कोमल हृदय को अपने कठोर पैरों तले कुचलने वाला।।
हां हमने ही तो इसे बनाया, हमारी छत्रछाया में ,ये विशाल हो आया।
इतना विशाल कि हम सब बौने हो गये।
चाह कर भी हमारे हाथ इस तक नहीं पहुंचते,
इसकी यातना से हम पल -पल सिसकते।
परम्परा जो चली उपहार वाली,
कुप्रथा और कलंक बन गयी।
समय के साथ लोभ से जुड़ गयी।।
बेटियों के लिए बेटे बेचे जाने लगे,
ऊँची-ऊंची बोलियों से तोले जाने लगे।
जन्मदाता बेटियों को बोझ समझने लगे,
दहेज की फिक्र ज्यादा, करियर को कम समझने लगे।
बेटियां है दूसरे घर जाना है ,
करियर क्या खाक बनाना है।
बंद करो इस कुत्सित सोच को,
दो विराम मन की लोच को।
बस करो इस कुप्रथा को सहेजना,
बंद करो दहेज को इकट्ठा करना।
चाहते हो गर कुछ सहेजना,
तो बेटियों के मन को सहेजो,
इनके अंदर मन की तरंगों को खोजो।।
