देवी
देवी
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असुरो की बस्ती में जब हुआ आगमन देवी का
नतमस्तक थे देव सभी.....
देख परिवर्तित श्रृष्टि की छवि का
देखा जो निर्मम नरसंहार तो पहनी मुंडमाला
नहीं रहा वश में वेग, बनी ज्योति से ज्वाला
हर सीमा लांघी तभी,जब हुई भारी अती
जैसी जिसने चाल चली वैसी हुई उसकी गति
सीख लो अब भी संभल जाओ आदम के जन
व्यवहार में करो बदलाव , लेलो साधु शरण,
और.......
ना करो नारी को तंग
करो आदर समझो सखी
वरना नहीं बचेगा कोई अंग।