चर्चायें
चर्चायें
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पच्चीस जून ऐसे बीता ,
जैसे घड़े से पानी रीता ,
आज घर में मेहमान आये ,
उनके संग ही वक़्त बिताये |
अब तो लोगों का चेहरा ,
देखे भी एक अरसा बीता ,
कोरोना की मेहरबानी ,
का ये सब है नतीजा |
आज अपनो से मिलके ,
प्यारी डायरी बहुत अच्छा लगा ,
गिले - शिकवे सब भुला ,
जीने का मौका मिला |
शाम भोजन के बाद ,
कुछ चर्चायें हुईं ,
नए ज़माने की जीवन शैली ,
पर विभिन्न टिप्पणियाँयें हुईं |
अंत में यही एक निष्कर्ष निकाला ,
कि प्रकृति का ही सब जगह बोलबाला ,
यदि मनुष्य इससे छेड़खानी करेगा ,
तो निश्चय ही पाप का भागी बनेगा ||