छाई फाल्गुन की बहार
छाई फाल्गुन की बहार
छाई फाल्गुन की बहार ,
पड़ी होली की फुहार ,
रंगे रँगों में रंगीले ,
निकले सड़कों पे छैल - छबीले ,
भर - भर मारे पिचकारी ,
भीगी बालायें सारी ,
मुख से देतीं जब वो गाली ,
हिलती कानों में तब बाली ,
दिल ले जातीं अपना वो यार ,
छाई फाल्गुन की बहार ।
छाई फाल्गुन की बहार ,
पूरे साल किया इंतजार ,
लगते फाल्गुन में जब मेले ,
मिलते चोरी - चोरी तब अकेले ,
देते उनको शगुन की साड़ी ,
पहन वो लगती मतवाली ,
झूला झूलें संग - संग दोनो ,
हाथों में हाथ डाले दोनो ,
उनसे हो जाता तब प्यार ,
छाई फाल्गुन की बहार ।
छाई फाल्गुन की बहार ,
थक गए करते - करते इंतजार ,
इस फाल्गुन में चढ़ा बारात ,
ले आये उनको संग में साथ ,
कितने फाल्गुन से थी वो प्यासी ,
इस फाल्गुन में बनी अब दासी ,
मारी पिचकारी फैंका गुलाल ,
हुए शरम से गाल लाल ,
अब दो से होंगे चार ,
छाई फाल्गुन की बहार ।।
