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"च"

"च"

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"च " से वो "चेष्टा" जो विजय को करीब लाती है 
"च" से वो "चौकसी" जो सिपाही को सतर्क बनाती है 
"च" से वो "चेतना" जो हमें इंसान बनाती है 
"च" से वो "चरित्र" जो हमारा औचित्य बताती है 
"च" से ही वो "चंचलता" जो मन को मोह जाती है 
"च" से ही वो "चरम" है जो हमारी हदें बनाती है 
"च" से वो "चंदा" जिसकी ख़ूबसूरती की मिसालें दी जाती है 
"च" है वो "चितवन" जो सब पाना चाहते हैं 
"च" से है वो 'चाहत" जो हम जीवन में चाहते हैं 
"च" से है वो "चन्दन" जो भाल पे लगता है 
"च" से ही वो "चिंतन" जो विचार को महान बनाता है 
"च" से ही "चमत्कार" जो हर मनुष्य "चाहता" है 
"च" से वो "चेतावनी" जो कुदरत हमको देती है
"च" से ही वो "चीत्कार" जो एक अबला देती है 
"च" से ही वो "चरक" जिसने दिया आयुर्वेद 
"च" से ही वो "चमड़ी" जिसकी "चमक" में हम भूले जीवन के भेद


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