बसंत की बहार।
बसंत की बहार।
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डूबी धरित्री रंग में
उमंग अंग-अंग में,
सुरम्य हर दिशा
अपूर्व रूप,यह सिंगार।
बसंत की बहार।
चली हवा ,उड़ी चूनर
महक उठी गली-डगर,
अमंद झूमते सुमन
कली-कली निखार।
बसंत की बहार।
नवीन कोपलें, तना
विटप विहँस उठा घना,
प्रफुल्ल मालिनी रही
है बौर को निहार।
बसंत की बहार।
विहग मगन चहक रहे
भ्रमर उड़े बहक रहे,
खिले कुमुद,निसर्ग का
निमग्न तार - तार।
बसंत की बहार।
कृषक सहर्ष झूमते
नई फसल को चूमते,
समग्र क्यारियों में
बालियाँ झुकीं अपार।
बसंत की बहार।
