बर्बाद हो रहे है
बर्बाद हो रहे है
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ये जो रोज़ मयखाने में दो दो जाम हो रहे है,
किसी को कहते सुना की हम बदनाम हो रहे है।
एक दफा इश्क़ की पगडंडी से क्या गुज़रे साहब,
हमारी जुदाई के किस्से अब सरेआम हो रहे है।
इन मुखालिफ़ीन से डर हो तो अब किस बात का,
हम तो वैसे भी टुकडों में नीलाम हो रहे है।
पहले जिस्म साथ छोड़ा अब रूह तैयार है,
उसे रोकने से सब पैंतरे नाकाम हो रहे है।
बैठे है तो चलो किसी वादे को दफन करे,
रोज़ फ़क़त वादो के कत्ल-ए-आम हो रहे है।
ये जो साक़ी ने फिर एक जाम भर डाला है,
शायद अब मुझे हराने के इंतेज़ाम हो रहे है।