भीड़ में बैठी मैं
भीड़ में बैठी मैं
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भीड़ में बैठी मैं
तुम्हें कहती हूँ
'तुम्हारी कविता अच्छी नहीं
तुमने नहीं सीखा
इसे कैसे पढ़ा जाना चाहिए।
मैं कहती हूँ
'आओ मैं सिखाऊं तुम्हें
कैसे लिखी जानी चाहिए
एक अच्छी कविता।'
तुम्हें देखती
क्रोध और आक्रोश से भरी
मेरी दोनों आँखें
झपकती हैं,
देखती हैं एक भीड़
सोशल मीडिया पर
तब भीड़ में बैठी मैं
फिर भीड़ की हो जाती हूँ।