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Harshita Dawar

Others

5.0  

Harshita Dawar

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बेटी हूं तो क्या मां का गुरूंर

बेटी हूं तो क्या मां का गुरूंर

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बेटी की किलकारियों में खुशियों की लहर सुनाई दी

उस दिन मुझे मां बनने का एहसास

दिल के परिंदों को उड़ान लेने को मजबूर था।

संजोए थे जो सपने वो पूरे होते नज़र आने लगे।


मां बहुत छोटा सा शब्द है पर

खुशियों का खज़ाना लिए घर महकता रहा है,

लड़की से औरत का सफ़र

औरत से मां का सफ़र,

कभी ना ख़तम हूं,

का सफ़र चलता जा रहा है।

मां घर का स्तंभ बन गई

घर की दीवारों की रौनक बन गई

मां ना हो तो सूनी लगती है राहें।

एक ख़ुशी की लहर सी दौड़ गई मां की आंखो में।


बड़ी चाहत थी मुझे गुरूर करवाने की

मां के दिल की आवाज़ महसूस की थी मैंने,

उन आंखो की चमक देखी थी मैंने।

टापके थे वो ख़ुशी के आंसू आज भी महसूस होते हैं,

जब तस्वीरों को देखते हुए वो गुरूर कर रही थी।


बेटी की मां होना,बेटी की मां होना,

मां के दिल से वो आह सुनाई दी,

जिन लोगों ने ये कहा था बेटी है क्या कर लेगी?

आज मेरी मां की आंखो में वो गुरूर देखा।

बेटी की मां का स्वाभिमान देखा,

जीने का अभिमान देखा ,

चकाचौंध कर रही थी वो चमक देखी।

मेरे भी गुरूर है,मेरा भी गुरूर है।


बेटी की मां हूं,

पूरा स्वाभिमान हूं,

कभी ना ख़त्म होने वाली कड़वी सच्चाई हूं,

बेटी की मां हूं,बेटी की मां हूं।

आज मै भी मां हूं।

मां पर गुरूर करती बेटी को देखा मैंने,

अकेले लड़ते हुए

खुद को देखा मैने,

मेरी परछाई को इतराते हुए देखा मैंने,

मैं अपनी मां की बेटी का सुरूर,

अब मैं अपनी बेटी का गुरुर

वक़्त आएगा कर दिखाएगा,

मगरुर कर जाएगा,

मसरूफ कर जाएगा।

बेटी की मां हूं।

कोई वक़्त नहीं को ऐसे ही गुज़र जाएगा,

ऐसे ही गुज़र जाएगा।


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