बेसुध तन्हा बेशुमार
बेसुध तन्हा बेशुमार

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बेसुध तन्हा बेशुमार मैं,
ख़ुद का ही इंतजार मैं।
क़ामयाबी हक़ है मेरा,
इसके लिए बेक़रार मैं ।।
लाखों पीछे छूट गए,
अभी छोडूंगा कई हज़ार मैं ।
कई बंदिशें मेरे पैर खींचती है,
पर आगें बढूंगा बार-बार मैं ।
काँटों पर से मैं अकेला आया हूँ,
पुष्प तेरी ख़ुशबू का हक़दार मैं ।।