बात कुछ और थी
बात कुछ और थी
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डूबती हुई कश्ती का किनारा बन के
मिले थे तुम हमें सहारा बन के
लौटाई वो खोयी हुई मुस्कान
डाल के अपनी बातों में जान
घड़ी की काटें दौड़ती हुई
खुद को मैं पाऊँ खोती हुई
वक्त ने फिर से धोखा दिया
मेरी खुशी को ना कोई मौका मिला
आस्मां भी छू लेती मैं अगर तू साथ देता
कुछ समझा के कुछ डांट के सिखा देता
अक्सर इस दिल की तलाश बेकार थी
पर इस बार जो मिला उसमें बात कुछ और थी
इस बार जो मिला उसमें बात कुछ और थी।
