बारहसिंगी का सबक
बारहसिंगी का सबक
जंगल में थे दो बारहसींगे
खुबसूरत सींग के मद में थे चूर
दोनों में से एक था भोला
एक था नटखट बड़ा सजीला
दोनों की थी प्रेमिकाएं ढेर सारी
पर वो दोनों ही मरते थे एक पर
जंगल की बारहसिंगी होनहार
उसको सींगों का घमंड न था
दोनों बारहसिंगे अड़ पड़े
बारहसिंगी के लिए लड़ पड़े
दोनों ने ढेर सारी चोटे खाई
और अंत तक करी भिषण लड़ाई
दोनों के कई सींग टूटे
अंत में बारहसिंगी पहुंची जब
उसने दोनों को समझाया तब
बोली रुप का न घमंड करो
सजने धजने का न पाखंड करो
प्रेम अगले से करने में पहले
स्वयं से प्रेम प्रारम्भ करे।
