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Rajesh Kamal

Others

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बागबाँ

बागबाँ

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बागबाँ भगवान नहीं

एक इंसान ही तो है

वो चाहता है कि हों,


उत्तर दिशा में दो सहेलियाँ

लाल-नारंगी बोगिनबेलिया

हरे भरे अशोक के बीच

लाल-लाल गुलमोहर पलाश,


पूरब है सूरज का कोना

सूरजमुखी वहाँ है होना

तालाब में पानी कम हो

दलदल में खिले कमल हों,


पश्चिम में हो मुख्य द्वार

ट्यूलिप के चार कतार

दक्षिण में चमेली के घेर

और लाल-पीले कनेर,


कभी काटता है, कभी छाँटता

कभी पूरी क्यारी उखाड़ता

उसे नीले फूल बिलकुल भी

पसंद नहीं, तो लगाया नहीं,


उसे फलदार वृक्ष भी

नापसंद, समय लगता है,

सेवा चाहिए, फल के लिए

फूल तो हर दिन आते हैं,


उसे नील-माधव और

नीलकंठ भी नही जँचते

शेष-शैय्या शायी, श्रीपति

ही एक उसके आराथ्य हैं,


उसे बच्चों से प्यार है

करता उनसे बातें खूब

बाग के बीचों बीच बने

फव्वारे की सीढ़ियों पर,


नित नए ढब, नए करतब

नए फसाने, नई कहानियाँ

बच्चे खुश, वो भी खुश

यही तो वो चाहता है,


क्या करे बेचारा आखिर

बागबाँ भगवान नहीं

एक इंसान ही तो है।


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