बाग बगीचों की फ़िक्र नहीं
बाग बगीचों की फ़िक्र नहीं
विकास के नए मानक निगल
रहे बाग बगीचों का अस्तित्व
अब आम जनता पर डाल दिया
गया खुद को बचाने का दायित्व
बड़े माल और अट्टालिकाओं की
चकाचौंध में फंसी हुई है दुनिया
ऐसे में बड़े बड़े बागों के पेड़ों पर
चल रही हैं सरेआम कुल्हाड़ियां
पेड़ पौधों के संरक्षण को चलते
हैं बस कागजी तौर पर अभियान
धनार्जन के लोलुप बहुसंख्य लोग
नहीं देते पर्यावरण बचाने पर ध्यान
जंगलों के बजाय कंकरीट के ढांचे
खड़े करने पर सरकार का है जोर
ऐसे में फिर बाग बगीचों की फ़िक्र
नहीं करते वे लोग जो हैं बरजोर
बाग बगीचों का रकबा साल दर साल
घटता ही जा रहा देश में लगातार
फिर भी ठोस योजनाएं नहीं बनातीं
देश और राज्यों की सभी सरकार
बगीचे का लुत्फ ले पाने वाले लोग
भी आपको मिलेंगे सौ में तीन चार
95 फीसदी लोग बस एक निश्चित
दायरे में रहने को होते हैं लाचार।