अप्रत्याशित
अप्रत्याशित
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जिस बात की उम्मीद न थी, आज वही हुआ,
चंद लम्हों पहले जो असंभव लगा था, वह सही हुआ।
जिन शब्दों को बयां करने में दिल मेरा डर गया,
उन्हें कोई अनजान यूँहीं बयां कर गया।
क्या तरक़ीब आज़माई होगी,
शब्दों में क्या गहराई भरमाई होगी,
कि जिसे मैं आज तक पत्थर समझ रहा था,
वो उन्हें पल भर में मख़मल कर गया।
ये उन शब्दों की ताक़त थी या ग़लत मेरा अंदाजा,
एक दिन सामने से पूछूंगा बस हिम्मत देना ख़्वाजा।
अभी तो यह घटना “अप्रत्याशित” ही कहलाएगी,
उम्मीद करता हूँ किसी दिन उस तक भी पहुंच जाएगी।
