अंतस में हो उजास
अंतस में हो उजास
सूर्य के आभा की दीप्ति बड़ी अलौकिक,
जो समस्त विश्व को प्रकाशित करती है !
दिनकर की किरणों का प्रसार चहूँ ऒर ,
हर एक जीव में नित नई चेतना भरती है !
भानु की कृपा से होता मेरा मन चितवन ,
जो मन हो प्रसन्न तो हरित समूची धरती है !
सप्त रंग की सात अनुपम दीप्त आभा ही ,
अपने अंतस की सारी घोर निराशा हरती है !
मन-मोहक है सूरज की प्रखर सुबह-सुहानी,
पावन स्वच्छ चंचल नदी कल-कल बहती है !
शीत शीतल मलय चलती अतिशय सर्दीली,
बड़े धीमे - धीमे, सर -सर सरकती रहती है !
अरुण अरुणेश की अनंत अनुकम्पा से ही,
यह दुनिया एक धुरी पर ही निरंतर चलती है !