अलविदा दीदी
अलविदा दीदी
अमर आत्मा का अनंत सफ़र
दे गया अश्रु करोड़ों नयनों में,
वेदनाओं का यह पल
क्यूं न थम जाएं यहीं पर।
ममत्व के आंचल में जिसने
समेटा था अपने अनुजों को,
क्यूं उठ गया आज वह प्रेम का साया
क्यूं हो गई दीदी मौन।
स्वरों की स्वर लहरी में
मंत्र मुग्ध हो जाते जन,
स्वर की सरस्वती हो गई है आज मौन
चिताकर रही है अपनों की पीड़ा
शोक के सन्नाटे में निःशब्द है बोल।
हर एक मन की आवाज
स्तब्ध है धड़कन की हलचल,
भावनाओं का गहरा संबंध
क्यूं टूट गया है दीदी का संग,
कैसा है यह नियति का नियम??
हे मां शारदे!
क्यूं आपकी प्यारी बेटी
वसंत पंचमी की पावन पर्व पर
हमसे अलविदा कह गई?
कलयुग में सादगी और संस्कृति की छवि दीदी
क्यूं महान स्वर सम्राज्ञी हमसे बिछड़ गई??
भारत रत्न से सम्मानित
भारत की थी शान ,
दीदी आप हो हमारे अभिमान,
पीढ़ी अंतराल को भेदती आपकी वाणी
संगम होता संवेदनाओं का
मिलती भावों की डोर भावों से
अनोखी थी आपकी सादगी।
व्यक्तित्व में सरल सौम्यता की छवि
माथे पर तिलक का टीका
होंठों पर वह मीठी मुस्कान ,
ओढ़ के रखती थी अपना पल्लू
लगती थीं भारत मां की प्यारी बेटी,
चेहरे पर प्रभावी छवि थी
देखते ही पापी भी नतमस्तक हो जाएं
व्यक्तित्व में थी दीदी आप एसी धनी।
