पैसा पैसा पैसा
पैसा पैसा पैसा
पैसा पैसा पैसा
अजीबो गरीब है इसका किस्सा
इन्सान इंसान का दुश्मन बनता
इंसान इन्सानियत का कर्म भूलाकर
तपता रहता है स्वार्थ के जीवन में
अहम का राजा यह पैसा
न कोई भावबंध इससे ऊंचा।
पैसा पैसा पैसा
कैसा है इसका किस्सा
खरीद लेता है हर एक
चीज़ या हो ईमानदारी
इसके बिना कलयुग की
कल्पना भी है अधूरी
रिश्तों की तोड़ता कमर पैसा
भाई भाई को बांट देता
माता पिता को अनाथाश्रम
का मार्ग है दिखाता
हर चीज़ का सौदा करवाता।
पैसा पैसा पैसा
कैसा है इसका किस्सा
सौदागरों का सौदागर
हार ना कभी यह मानता
इंसान बना इसकी कटपुतली
धर्म कर्म के मूल्य तत्व
चढ़वा दिए गए सूली पर
इंसान की इन्सानियत मर गई
हैवानियत फैली चारों ओर
प्राणियों ने इन्सानियत निभाई
समझदारी के नासमझ दुनिया में
कहलाए वह तुच्छ
पाप का पोषक बनता इंसान
कहलाया श्रेष्ठ
पैसा पैसा पैसा
कैसा तेरा यह किस्सा।
