अजीब
अजीब
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अजीब है दुनिया तेरे उसूल भी,
चलना उससे सीखा जिसे
आज चलने के लिए लकड़ी थमा दी,
घर पे उसके राज किया
जिसे आज बेघर किया,
गिरे जब ऊँगली उसकी
पकड़ी जिसका हाथ आज छोड़ा,
दुनिया उससे देखी पर जो
चंद महीने, दिनों का मेहमान है
आज उसे ही अपनी दुनिया से बेदखल किया,
सीख उनसे सीखी और आज
सीख भी उन ही को सिखाई
वाह!, दुनिया अजीब है तेरे उसूल
