अजीब दौर
अजीब दौर
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मुझे,क्यों एसा लगता है
यह एक अजीब दौर की इबतिदा है,
जहां चाहता तो है हर कोई लिखना
मगर पढ़ना कोई नहीं चाहता।
ये जीस्त क्या है?
एक अनकहा अफ़साना हमारा
जिसे सुनना कोई नहीं चाहता,
हर सू बिखरी हैं सदाएं
हर शख्स चिल्ला रहा है,
यह बहरों का शहर है
या कि सुनना कोई नहीं चाहता।
न जाने यह कैसी दौड़ है?
हर शख्स दौड़ रहा है
आखिर वो मंजिल क्या है
कि थमना कोई नहीं चाहता।
न जाने मुझे क्यों लगता है
यह एक अजीब दौर की इबतेदा है।
