ऐ पिता !
ऐ पिता !
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तू हँसे तो मैं मुस्कुराऊं,
ऐ! पिता
तेरे सजदे में सर झुकाऊँ
एक वक्त था तू मेरा साया था,
जी चाहता है, तेरी उम्र संग
तेरा साया बन जाऊँ
तेरे सजदे में सर झुकाऊँ
बेटी की मजबूरियों को
कौन समझेगा
तेरे घर में हूं मेहमान
खुद को ये समझाऊं,
तेरे सजदे में सर झुकाऊँ
तेरी इबादत से ही,
कुबूल हो जाती है दुआएँ मेरी
आसमान को देखूं तेरा
ही अक्स पाऊँ
ऐ! पिता
प्यारे पिता
तेरे सजदे में सर झुकाऊँ।
