अभिज्ञ हो तो जान लो
अभिज्ञ हो तो जान लो
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आ रही थी रोशनी जो,
फुस की झोपड़ियों से,
कुछ रोशनी थी फैलती,
पर अब अंधेरा छा गई,
अभिज्ञ हो तो जान लो।
जलता चिराग बुझ गया,
या भोर की धूं छा गई,
अम्बर ही उस पर छा गया,
या ग्रह कोई मंडरा रही,
अभिज्ञ हो तो जान लो।
उपर गरजते मेघ में,
झांकते देखा वरुण को,
वर्षा की बूंदें पड़ी,
या आंधी उसे बुझा गई,
अभिज्ञ हो तो जान लो।
जोत उसकी शान में थी,
शशि भी फीका पड़ा था,
दुश्मन का साया पड़ा,
या बाती ही कुंभला गई,
अभिज्ञ हो तो जान लो।
