कहां है मेरा लोकतंत्र
कहां है मेरा लोकतंत्र
बांध सब्र का, टूटा जा रहा,
हक किसान का, लूटा जा रहा।
निहत्थे पर, कहर ढा रहे,
सड़कों पर हैं, लहू बहा रहे।
हर तरफ है, चीख़ मची,
दामन पर है, पसरा खून।
तनिक निकलकर, बाहर तो आ,
कहां है मेरा ,लोकतंत्र तू।
अत्याचार हो, सहते रहना,
सख्त मना है, धरना करना।
धरना करने, गर जाते हैं,
लाठी डंंडे, बरस जाते हैं।
अगर लगाते, हक के नारे,
बेशक वे जाते हैं मारे।
चुप नहीं अब, बैठेंगे हम,
छीन रहा है मेरा हक तू।
तनिक निकलकर, बाहर तो आ,
कहां है मेरा, लोकतंत्र तू।
लोकतंत्र में, आन्दोलन ही,
जनता का, हथियार है।
इसे दबा, नहीं सकते तुम,
यह मेरा, अधिकार है।
अधिकारों का, हनन हो रहा,
फिर भी क्यों, चुप बैठा है तू।
तनिक निकलकर, बाहर तो आ,
कहां है मेरा, लोकतंत्र तू।