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Vaidehi VanyA

Inspirational

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Vaidehi VanyA

Inspirational

अब मैं अपने पँख खोल रही हूँ

अब मैं अपने पँख खोल रही हूँ

1 min
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”अपने नए उगे पँख तोल रही हूँ मैं … “

तलाश खुद की करने निकल पड़ो तो…

सुकूँ भी रास्ते में मिल ही जाएगा !


भला ये किसने कहा कि…

तुम्हारे जाने के बाद मैं तन्हा हो गई हूँ…?

अब मैं फिर से खुद की खोज में निकली हूँ ;

मुझे बहुत याद आने लगी थी ज़ब खुद की,


सोचा,आखिर क्यों मैं खुद को भूल चुकी हूँ ?

नए सफर में ज़ब देखा अपनी लंबी रहगुजर को तो,

हर एक रास्ता मंज़िल की तरफ ले जाता तो था ;

बस…मैंने ही अपने सारे स्कंध तुम्हारे बाजुओं के


इर्द गिर्द कुछ बड़ी ही मज़बूती से लपेट रखा था !

अब धीरे-धीरे एक-एक बंध खोलकर रख रही हूँ,

कहीं की तुरपाई तो कहीं की सिलाई खोल रही हूँ !

अकेले का सफर आसां नहीं पर स्वाभिमान संग है ;


साहस दिलाने को ये बार बार खुद को बोल रही हूँ !

बढ़ाना मेरा हौसला कि रुकें ये कदम कभी ना,

अभी तो एक पैर से उचककर छूना है आसमां ;

अपनी ख्वाहिशों का अलख जगाकर रख रही हूँ,


मैं फिर से उड़ने को अपने नए उगे पँख तोल रही हूँ!

मंज़िल चाहे अब कितनी दूर हो, पाकर रहूंगी ;

आज मैं एक बार फिर खुद से यही बोल रही हूँ !

अब अपना एक हाथ दूसरे हाथ से पकड़कर,


मैं फिर से उड़ने को अपने नए उगे पँख तोल रही हूँ !


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